Varanasi news:आचार्य सीताराम चतुर्वेदी महिला महाविद्यालय में आचार्य पं. सीताराम चतुर्वेदी का 118वें जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन।

पड़ाव/वाराणसी

आचार्य सीताराम चतुर्वेदी महिला महाविद्यालय में आचार्य पं. सीताराम चतुर्वेदी जी के 27 जनवरी को 118वें जयंती के उपलक्ष में “भारतीय ज्ञान परंपरा एवं अभिनवभरत आचार्य सीताराम चतुर्वेदी का अवदान” विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
सर्वप्रथम आचार्य सीताराम चतुर्वेदी जी तथा मां सरस्वती जी के चित्र पर अतिथियों द्वारा पुष्पांजलि अर्पित कर संगोष्ठी का शुभारंभ किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा जी, विशिष्ट अतिथि प्रो.अवधेश प्रधान जी, पूर्व आचार्य, हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, मुख्य वक्ता प्रो. शशिकला त्रिपाठी जी, पूर्व आचार्य, वसंत महिला महाविद्यालय, राजघाट, वाराणसी, महाविद्यालय की निदेशक एवं पूर्व कुलपति जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया प्रो. कल्पलता पाण्डेय जी तथा महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. रामनरेश शर्मा जी द्वारा महाविद्यालय में औषधीय पादप उद्यान का उद्घाटन किया गया। उद्यान में सैकड़ो तरह के औषधीय पौधे लगाए गए हैं जिनका मुख्य अतिथि ने निरीक्षण किया तथा पौधरोपण भी किया। पौधरोपण के पश्चात महाविद्यालय के प्राचार्य कक्ष में नवनिर्मित महाविद्यालय की अब तक की टॉपर छात्राओं के एक्सीलेंस जोन का उद्घाटन भी मुख्य अतिथि के द्वारा किया गया।
कुलगीत के पश्चात संगोष्ठी का आरंभ हुआ। संगोष्ठी में सर्वप्रथम महाविद्यालय की निदेशक महोदया द्वारा मुख्य अतिथि प्रो. बिहारी लाल शर्मा जी, कुलपति, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को अंग वस्त्र, स्मृति चिन्ह तथा पौधा देकर उनका सम्मान किया गया। बाल विद्यालय माध्यमिक स्कूल, डोमरी के निदेशक मुकुल पाण्डेय द्वारा विशिष्ट अतिथि प्रो. अवधेश प्रधान जी का सम्मान किया गया। मुख्य वक्ता प्रो. शशिकला त्रिपाठी जी का सम्मान संगोष्ठी की संयोजक डॉ. प्रतिमा राय के द्वारा किया गया तथा महाविद्यालय की निदेशक महोदया का सम्मान डॉ. सुनीति गुप्ता के द्वारा किया गया।
इसके पश्चात संगोष्ठी की संयोजक डॉ. प्रतिमा राय के द्वारा मुख्य अतिथि तथा मुख्य वक्ता का परिचय दिया गया एवं संगोष्ठी के विषय पर प्रकाश डाला गया।
संगोष्ठी की मुख्य वक्ता प्रो. शशिकला त्रिपाठी जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आचार्य पंडित सीताराम चतुर्वेदी सनातन धर्म के ध्वजवाहक सदृष्य दिखाई देते हैं। मनुष्य बने रहने के लिए जरूरी है कि हम सांस्कृतिक परंपरा से जुड़े। आचार्य जी काशी के सपूत थे। वह शिक्षक, दार्शनिक, लेखक भी थे। वह आसपास के लोगों को प्रेरित करते रहते थे। भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रखर वाहक और उपदेशक रहे हैं। उन्होंने बताया कि आचार्य जी ने 80 नाटक लिखे हैं। बुलानाला में आचार्य जी ने चंद्रगुप्त नाटक ( जयशंकर प्रसाद) का मंचन किया।
डॉ. अरुण कुमार दुबे ने विशिष्ट अतिथि प्रो. अवधेश प्रधान जी का परिचय दिया।
संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि प्रो. अवधेश प्रधान जी ने कहा कि उनको आचार्य जी के दर्शन तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ है। उन्होंने स्वयं को अभिनवभरत कहा था तथा वह सर्वथा योग्य थे।
मुख्य अतिथि ने संगोष्ठी में बोलते हुए कहा कि उन्हें आचार्य जी का दर्शन करने का सौभाग्य तो नहीं मिला। उन्होंने कहा कि आचार्य सीताराम चतुर्वेदी जी एक व्यक्ति नहीं विचार हैं, सीमित नहीं अपार है। वह अप्रतिम साहित्यकार, व्यंग्यकार, निबंधकार एवं बहुआयामी व्यक्तित्व के थे। उन्होंने कहा कि रचनाओं का दोहरा शतक लगाना एक असाधारण बात है, आचार्य जी उन गिने चुने लोगों में रहे हैं जिन्होंने रचनाओं का दोहरा शतक लगाया है। आचार्य जी को स्वाधीनता के बाद भारत मां के विकसित तंत्र की चिंता थी।
संगोष्ठी में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए महाविद्यालय की निदेशक महोदया ने भी आचार्य जी के प्रति विचार व्यक्त किया तथा सभी का आभार व्यक्त किया।
संगोष्ठी के पश्चात आचार्य जी से संबंधित उनकी रचनाओं तथा उनके पत्रावलियों व सामानों के संग्रहालय का उद्घाटन भी मुख्य अतिथि के द्वारा किया गया।
संगोष्ठी में सबका धन्यवाद ज्ञापन बाल विद्यालय माध्यमिक स्कूल, प्रह्लादघाट के निदेशक मंजुल पाण्डेय ने किया।
संगोष्ठी का संचालन रिचा शुक्ला ने किया।
संगोष्ठी में प्रो.विनीता सिंह, प्रो. मनोहर राम, डॉ. संजय प्रकाश, प्रभुनाथ यादव, डॉ. रजनी श्रीवास्तव, डॉ. सूर्य प्रकाश वर्मा, दीपक गुप्ता, वरुण अग्रवाल, लवकेश तिवारी, अनीता पाण्डेय, हरेंद्र पाण्डेय, दीपक मिश्रा, अंजलि विश्वकर्मा, प्रतिभा गुप्ता, शिव प्रकाश यादव, नीलम श्रीवास्तव, वैशाली पाण्डेय, आशीष सिंह,चंचल ओझा, शाहिना परवीन, बबलू साहनी आदि लोग उपस्थित रहे।