दुल्हिपुर/चंदौली

फ्लोरेंस स्कूल के विद्यार्थियों ने आज शैक्षिक भ्रमण के दौरान सिद्धनाथ दरी, सक्तेशगढ़ आश्रम, दुर्गा मंदिर, चुनार किला और भंडारी देवी मंदिर तथा सम्राट अशोक के शिलालेख का अवलोकन किया। इस दौरान छात्र-छात्राओं ने प्राकृतिक और ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी प्राप्त की। विद्यालय के प्रबंध निदेशक अशोक कुमार ने बताया कि शैक्षिक भ्रमण छात्रों को कक्षा के बाहर व्यावहारिक शिक्षा, सांस्कृतिक ज्ञान और सामाजिक कौशल विकसित करने के लिए किया जाता है, जिससे उन्हें इतिहास, विज्ञान, प्रकृति और संस्कृति का सीधा अनुभव होता है जिससे, उनका मानसिक तनाव कम होता है और समग्र व्यक्तित्व का विकास होता है। उन्होंने सिद्धनाथ दरी के बारे में बताया की उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित सिद्धनाथ दरी एक प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व वाला स्थान है। तथा चुनार के किला का अपना एक समृद्ध और प्राचीन इतिहास है। किवंदतियों के अनुसार राजा सहदेव ने 1029 ईस्वी में पहाड़ी के गुफा में नैना योगिनी की मूर्ति स्थापित की थी। जिसके कारण इस किले का नाम नैनागढ़ पड़ा। किले की स्थापना उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई राजा भर्तृहरि के तपस्या स्थल के सम्मान में की थी। राजा भर्तृहरि की समाधि अभी भी किले के भीतर मौजूद है। इस किले ने16वीं शताब्दी में कई महत्वपूर्ण शासको का अधिकार देखा। मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने 1525 ईस्वी में यहां डेरा डाला। बाद में शेरशाह सूरी ने इसे इब्राहिम लोदी के गवर्नर की विधवा से विवाह करके प्राप्त किया। 1574 ईस्वी में अकबर ने इस किले पर कब्जा कर लिया और यह 1772 तक मुगल शासन के अधीन रहा। इसके पश्चात 1772 ईस्वी में ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने किले पर अधिकार कर लिया और इसे तोपखाना तथा गोला बारूद के डिपो के रूप में इस्तेमाल किया। यह स्थान 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वारेन हेस्टिंग्स के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह श भी बना। किले के भीतर कई ऐतिहासिक संरचना है। जैसे की 52 स्तंभों पर आधारित एक पत्थर की छतरी राजा सहदेव की 52 राजाओं पर विजय की स्मृति में और सोनवा मंडप नेपाल के राजा की बेटी का विवाह स्थल इस प्रकार नैनागढ़ का यह ऐतिहासिक किला विभिन्न युगों के शासको, पौराणिक कथाओं और महत्वपूर्ण राजनीतिक ऊथल पुथल का गवाह रहा है।





