वाराणसी

गुरु और महापुरुषों की वाणियों पर चलना ही उनके प्रति समर्पण है। लेकिन यह भी है कि यदि गुरुजन अपने राष्ट्र के प्रतिकूल कोई बात कहें तो विवेक की कसौटी यही होगी कि आप उनकी बात को नहीं मानें। जिस तरह महात्मा बुद्ध ने जापान के अपने शिष्यों से पूछा कि आपलोग मुझे अपना गुरु मानते हैं, यदि मैं आपके देश पर आक्रमण करूँगा तब आप क्या करेंगे? उन लोगों ने कहा कि तब हम आपकी बातों को नहीं मानेंगे, अपने देश की रक्षा करेंगे।
गुरु जो मंत्र हमें देते हैं हम उन मंत्रों से भी मंत्रणा ले सकते हैं। हमारे पास जो बीज-रूपी मंत्र है उसको बराबर घुलाते रहते हैं, तो वह हमारी दृष्टि को खोल देता है। यदि हममें पवित्रता है, सच्चाई है, सत्य के प्रति निष्ठा है और पूर्ण विश्वास है- गुरु पर भी और अपने-आप पर भी तो हम अवश्य ही आगे बढ़ेंगे। दोनों में किसी एक पर भी अविश्वास होने से हम आगे नहीं बढ़ सकते। क्योंकि गुरु यह नहीं कहता है कि आप हमारे ही पीछे-पीछे चलिए, वह तो अपना बनाकर छोड़ देते हैं। उस कार्य को आत्मविश्वास के साथ करना, अपना उद्धार करना, आपके हाथ में है।
हमलोग अपने राष्ट्र, समाज और विश्व के लिए चिंतित हैं, तो हमलोगों का भी दायित्व है कि हम जहाँ भी- गाँव या शहर में रहें, आसपास के लोगों के साथ कोई मंच साझा करके इन बातों को बार-बार कहने से, मंथन करने से, उन लोगों में परिवर्तन आ सकता है। मैं नहीं कहता कि आज के समय में सब कोई आपकी बात मानेंगे ही, लेकिन प्रयत्न करने से एक, दो, चार लोग जो बीज-रूप में बचे रहेंगे, तो उनका भी बड़ा महत्व है। जिस तरह पीपल वृक्ष का बीज बहुत ही छोटा होता है लेकिन जब वह पुष्पित-पल्लवित होकर बड़ा होता है तो बहुत ही विशाल होता है। उस पर अनेक तरह के जीव-जंतु, पक्षी विश्राम पाते हैं। हमें भी यदि विशाल होना है, तो यहाँ से मिल रही बीज-रूपी शिक्षा से पुष्पित-पल्लवित होना होगा।
पूज्य बाबा जी ने कहा कि इस राष्ट्र का अन्न-जल ग्रहण करते हैं तो हमारा भी कर्तव्य बनता है कि अपने राष्ट्र को कैसे बचाएँ। आज के युवाओं को कोई सही दिशा नहीं मिल रही, वे विपरीत दिशा में चल रहे हैं। उसका कारण है कि कंचन मृग के पीछे हमलोग दौड़ रहे हैं। कहा भी गया है- कनक, कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय, एक खाये बौराय जग एक पाये बौराय। एक तो नशा करके बौराए रहते हैं और एक के पास यदि धन आ जाता है तो उसका भी एक नशा होता है, उससे कई तरह के गलत-सही कार्यों को करने में उद्धत हो जाते हैं। हमें हर चीज को- चाहे वह विचार हो, चाहे सामग्री हो, चाहे धन-दौलत हो, उसको संभाल के रखना बहुत ही महत्वपूर्ण है। उसके लिए हमें गुरुजनों के वचन और अपने विवेक-बुद्धि का इस्तेमाल करना जरूरी है।
तो बंधुओं! हमलोग जो सोच रहे हैं कि हमारा अंत कभी होगा ही नहीं। बचपन से हमारी जवान अवस्था आ गई, सोचते हैं हम बुजुर्ग होंगे ही नहीं। अपनी जवानी के मद में, अपने ताकत के मद में यदि हम मदांध हो जाते हैं तो हमारा भी पतन होता है, दूसरे को भी हम प्रताड़ित करते हैं, अपने समाज को भी दिग्भ्रमित करते हैं और हमारा राष्ट्र भी पतन की ओर चला जाता है। यह सब होने से हम अपने संस्कार, अपनी संस्कृति को पिछड़ा समझने लगते हैं। जितनी भी अच्छाई है उसे अपने-आप में रखें। जब हम अपने-आप में रहेंगे तो जितना भी सौंदर्य हम बाहर देखते हैं उससे कई गुना सौन्दर्य हमारे अंदर है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन हम तो बाह्य जगत में ही खोये रहते हैं।
मैं देखता हूँ कि युवक भी अपने घर में पिशाचवत् आचरण-व्यवहार करते हैं। उससे परिवार की सुख-शांति चली जाती है। इसके दोषी केवल पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी होती हैं। हमारे यहाँ एक ग्रंथ है- ‘अघोरेश्वर स्मृति वचनामृत’ उसमें गृहणियों के कर्तव्य के बारे में दिया हुआ है और एक है ‘मृत्यु और अंत्येष्टि क्रिया’ जिसमें लिखा है कि गर्भवती माताओं को कैसे रहना चाहिए, कैसे आचरण करना चाहिए, कैसे दृश्य देखने चाहिए और क्या हमें सुनना चाहिए। केवल गर्भवती माताओं को ही नहीं, परिवारजनों को भी उनके प्रति कैसा आचरण-व्यवहार रखना चाहिए। तो उसमें जो शिशु होगा वह बहुत ही तेजस्वी होगा, वह कई बातों का जानकार होगा।
‘गुरु बहुरंगी सर्वसंगी’। यदि आपमें आस्था है, पूर्ण विश्वास है तो वह ईश्वर कहीं भी आपकी मदद कर देता है। बिरले लोग ही होते हैं जो पढ़ भी लेते हैं, कमा भी लेते हैं और उनको ज्ञान भी हो जाता है तो उनका जीवन कभी कष्टकर नहीं होता। जो बातें आपलोगों ने सुनी हैं इसको आप जरूर ग्रहण करेंगे और चलेंगे, तो मुझे आशा है कि अपने जीवन में अपने-आप को एक उच्चतर स्थिति में अनुभव करेंगे। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि हम सभी को सद्बुद्धि दें।
उक्त विचार गुरुपूर्णिमा (औघड़ पीर पर्व) के पावन अवसर पर आयोजित त्रिदिवसीय कार्यक्रम के महिला एवं युवा गोष्ठी में श्री सर्वेश्वरी समूह के अध्यक्ष पूज्यपाद बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी ने कहीं।
इस अवसर पर डॉ. कमला मिश्रा, प्रतिमा, नयनिमा रघुवंशी, शालिनी, रेनू, शामल राठौर, वसुंधरा, नीता हरीतिमा, सुनैना, किरण, प्रीति सिंह, गिरीश तिवारी, सौरभ, तुरबान, अनूप, कर्नल अमिताभ, चंद्र विक्रम शाह ने भी अपने विचार व्यक्त किया। गोष्ठी की अध्यक्षता नगेन्द्र प्रसाद पाण्डेय, मंगलाचरण सुमन शाही, संचालन सुष्मिता तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्था के मंत्री डॉ. एस.पी. सिंह ने किया।
इसी के साथ अघोर पीठ मे गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तीन दिवसीय कार्यक्रम का समापन हुआ।